सीतामढ़ी की संस्कृति: लोकनृत्य, संगीत और हस्तशिल्प
बिहार का सीतामढ़ी जिला न केवल माता सीता की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि यह अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए भी जाना जाता है। यहाँ की लोककलाएँ, परंपरागत नृत्य, और हस्तनिर्मित शिल्प सदियों से इस क्षेत्र की पहचान रहे हैं। आइए, इस अद्भुत सांस्कृतिक खजाने को करीब से जानें!
लोकनृत्य: भावनाओं की मूक भाषा
सीतामढ़ी के लोकनृत्य सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि इतिहास, प्रेम, और समाज की कहानियाँ बयाँ करते हैं। यहाँ के प्रमुख नृत्य हैं:
1. जट-जटिन नृत्य
- विषय: यह नृत्य प्रेमी जोड़े जट और जटिन की दुखभरी प्रेमकथा पर आधारित है।
- विशेषताएँ:
- पारंपरिक वेशभूषा में पुरुष धोती-कुर्ता और महिलाएँ लाल-पीले घाघरा पहनती हैं।
- नृत्य में ढोलक और मंजीरे की थाप पर तालबद्ध चालें होती हैं।
- मुखौटों का उपयोग कर कहानी को जीवंत बनाया जाता है।
2. धोबिया नाच
- उत्पत्ति: यह नृत्य स्थानीय धोबी समुदाय से जुड़ा है।
- शैली: तेज़ लय और चुस्त चालों वाला समूह नृत्य, जो श्रम और उत्सव का प्रतीक है।
3. छठ नृत्य
- संबंध: छठ पूजा के दौरान महिलाएँ अरघा देते समय यह नृत्य करती हैं।
- विशेष: हाथों में डलिया लेकर गीतों की थाप पर नृत्य।
लोक संगीत: जीवन का सुरीला साथी
सीतामढ़ी का संगीत प्रकृति, त्योहारों, और दैनिक जीवन से प्रेरित है। यहाँ के लोकगीतों में शामिल हैं:
1. विवाह गीत (सुमंगली)
- विषय: शादी के मौके पर गाए जाने वाले गीत, जिनमें सौभाग्य और विछोह के भाव होते हैं।
- वाद्ययंत्र: हारमोनियम और ढपली।
2. भजन और कीर्तन
- प्रेरणा: रामायण और सीता-राम की कथाएँ।
- लोकप्रिय गायक: गाँवों में भिखारी ठाकुर शैली के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत।
3. बिदेसिया गीत
- भावना: मजदूरों के पलायन और परिवार से विछोह की पीड़ा को दर्शाते हैं।
हस्तशिल्प: कलात्मकता की मिसाल
सीतामढ़ी के हस्तशिल्प न केवल सुंदर हैं, बल्कि यहाँ की आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान भी हैं।
1. मधुबनी पेंटिंग
- विशेषता:
- प्राकृतिक रंगों (हल्दी, गोंद, केले के तने) का उपयोग।
- रामायण और स्थानीय देवी-देवताओं के चित्र।
- कलाकार: ज्यादातर महिलाएँ, जो इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी सँभाल रही हैं।
2. बाँस की कलाकृतियाँ
- उत्पाद: टोकरी, चटाई, और सजावटी सामान।
- कला का केंद्र: रुन्नीसैदपुर और बाथनाहा गाँव।
3. लाक (लाख) की चूड़ियाँ
- विशेष: रंग-बिरंगी लाख की चूड़ियाँ, जो स्थानीय महिलाओं की पहचान हैं।
- बाजार: सीतामढ़ी शहर का हाट मार्केट इनका प्रमुख केंद्र।
सांस्कृतिक त्योहार: रंगों का संगम
- सामा-चकेवा: युवतियों द्वारा मनाया जाने वाला पर्व, जिसमें मिट्टी के पक्षियों से सजावट की जाती है।
- मलमास मेला: 12 साल में एक बार लगने वाला यह मेला लोक कलाओं का प्रदर्शन करने का अवसर देता है।
यात्रियों के लिए टिप्स
- स्थानीय कलाकारों से मिलें: मधुबनी पेंटर या बाँस शिल्पी के घर जाकर उनकी कला सीखें।
- खरीदारी: हस्तशिल्प के लिए सीतामढ़ी हाट या जनकी मंदिर के पास की दुकानें बेहतर विकल्प।
- समय: नवंबर से फरवरी तक का मौसम सबसे उपयुक्त।
निष्कर्ष: संस्कृति को जीवित रखने की जिम्मेदारी
सीतामढ़ी की संस्कृति एक जीवित विरासत है, लेकिन आधुनिकता के दबाव में यह धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। स्थानीय कलाकारों को समर्थन देकर और इन कलाओं को प्रोत्साहित करके हम इस खूबसूरत परंपरा को बचा सकते हैं। अगली बार सीतामढ़ी जाएँ, तो न सिर्फ मंदिरों में, बल्कि इन सांस्कृतिक गलियों में भी घूमें!